यशी डोलमा ने प्राकृतिक खेती से कोल्ड डेजर्ट में लाई हरियाली

0
1982

सब्जियां उगाकर बनी आत्मनिर्भर, प्राकृतिक खेती ने दिखाई राह

By- Raman Kant

हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिले लाहौल-स्पीति की कठिन भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियां आम जनजीवन के लिए एक बड़ी चुनौती हैं। देश-दुनिया से 6 महीने कट जाने वाले इस जिले में खेती करना और ज्यादा चुनौतिपूर्ण है। शुष्क-शीतोष्ण इस इलाके में किसान बामुश्किल एक फसल ले पाते हैं। ऐसे में किसानी से आत्मनिर्भरता की ओर जाना असंभव सा लगता है। लेकिन इस धारणा को यहां की एक महिला किसान ने बदल डाला है। काजा विकासखंड की महिला किसान यशी डोलमा ने खेती से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ क्षेत्र के किसानों के लिए मिसाल पेश की है।  

यशी ने प्राकृतिक खुशहाल किसान योजना के तहत सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती से कोल्ड डेजर्ट ऑफ इंडिया में हरियाली लाई है। इस खेती पद्धति को अपनाकर यशी डोलमा ने महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। यशी ने बताया कि खेती लागत कम करने और स्वस्थ व पोषणयुक्त भोजन उगाने के लिए उन्होंने प्राकृतिक खेती को चुना और आज इसके परिणामों से वे खुश हैं। लाहौल-स्पिति में केवल 6 महीने ही खेती होती है और लोग पारंपरिक फसलें उगाकर अपनी जीविका कमाते हैं। सिंचाई के स्त्रोत कम होने के कारण नकदी फसलों की खेती कठिन है। इसके बावजूद यशी डोलमा इंग्लिश वेजिटेबल्स को मिलाकर कुल 9 तरह की फसलों का उत्पादन कर रही हैं।

यशी डोलमा बताती हैं कि यह सिर्फ प्राकृतिक खेती से संभव हो पाया हैं। पहले हम सिर्फ पारंपरिक फसलों पर निर्भर थे, लेकिन अब हम नकदी फसलें भी उगा रहे हैं। नकदी फसलों के लिए ज्यादा पानी की जरूरत होती थी। सिंचाई सुविधाए ज्यादा थी नहीं, जो सुविधा उपलब्ध थी, उससे सिंचाई पूरी नहीं हो पाती थी। प्राकृतिक खेती शुरू करने से कम पानी में भी गुजारा होने लगा है। प्राकृतिक खेती में आच्छादन करने से मिट्टी में पानी को ज्यादा देर तक रोक कर रखने की क्षमता बढ़ गई, जिससे बार-बार फसलों को पानी की देने की जरूरत नहीं रही। पहले जहां हर रोज फसलों को पानी देना पड़ता था, अब हफ्ते में दो से तीन बार में ही पानी देने से ही गुजारा हो रहा है। प्राकृतिक खेती विधि से जहां फसल उत्पादन में आने वाली लागत घट रही है, तो वहीं उत्पादन भी बढ़ने लगा है। प्राकृतिक खेती के घर में बनाए कीट-फफूंदनाशी से फसलों में लगने वाले रोगों पर नियंत्रण हो रहा है और पोषणयुक्त फसल मिल रही है। बाजार में भी प्राकृतिक खेती के उत्पाद को अच्छा दाम मिल रहा है। प्राकृतिक खेती विधि शुरू करने के बाद अब खेती मुनाफे का सौदा हो गई है।

यशी बताती हैं कि वर्ष 2019 में गांव में कृषि विभाग की तरफ से प्राकृतिक खेती पर एक शिविर का आयोजन किया था। शिविर में कृषि अधिकारियों ने प्राकृतिक खेती के बारे में बताया। साथ ही प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले आदानों का व्यवहारिक ज्ञान भी दिया। इसके बाद मैंने उन आदानों को घर पर तैयार करना शुरू किया और खेतो में प्रयोग करने लगी। प्राकृतिक खेती के आदानों को प्रयोग करने से मटर की फसल में लगने वाले रोग पाऊडरी मिल्डयू और अन्य कीटों पर नियंत्रण हो गया और उत्पादन भी पहले की तुलना में अच्छा होने लगा। इसके बाद दिसंबर 2019 में हरियाणा के कुरूक्षेत्र में होने वाली एक्सपोजर विजिट के लिए उनके नाम का चयन हुआ।

यशी ने बताया कि प्राकृतिक खेती विधि शुरू करने से मेरा उत्पादन बढ़ने लगा था, इसलिए मैंने एक्सपोजर विजिट में भाग लेने का निर्णय लिया। एक्सपोजर विजिट के दौरान मैंने प्राकृतिक खेती विधि से उगाई विभिन्न फसलों को देखा और उनके बारे में जानकारी ली। एक्सपोजर विजिट में पता चला कि प्राकृतिक खेती से सालभर अलग-अलग फसलें उगाकर किसान अपनी आय बढ़ा सकते हैं। इसके बाद लौटकर मैंने गोभी की पनीरी पर जीवामृत और अन्य आदानों का प्रयोग किया।

नर्सरी में अच्छा परिणाम मिलने के बाद मैंने खेत में गोभी की पौध रोप दी। इसके बाद प्राकृतिक खेती के चमत्कार से खेत में गोभी उग गई जो पहले सोचा भी नहीं था। इस परिणाम को देखकर यशी ने अपने आस-पास की महिलाओं को भी गोभी की पौध दी जिसके बाद सभी महिलाओं ने अपने खेतों से पहली बार गोभी की फसल ली।

कोरोना काल में कृषि उत्पाद बेचने के लिए प्रशासन की मदद से खोली अपनी मंडी

यशी ने बताया कि कोरोना महामारी के दौरान बाजार की मौजूदा व्यवस्था चरमरा गई और किसानों को अपना उत्पाद बेचने के लिए दिक्कतें पेश आने लगीं। चूंकि कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन से किसान पहले की तरह अपना मटर, आलू और बाकि फसलें पहले की तरह नहीं बेच पा रहे थे, तो प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों ने स्थानीय तौर पर मंडी खोलने का सोचा ताकि उनका उत्पाद की स्थानीय तौर पर खपत हो सके। स्थानीय प्रशासन किसानों की मदद के लिए आगे आया और प्राकृतिक खेती कर रहे किसानों के लिए अपनी मंडी नाम से स्थानीय मंडी की शुरूआत हुई। हफ्ते के 3 दिन चलने वाली इस मंडी में यशी ने कोरोना महामारी के दौरान 40 हजार रूपए की सब्जियां बेचीं। यशी के अलावा क्षेत्र के अन्य किसानों ने भी अपनी फसल बेचकर लाखों का कारोबार किया है।

अब मार्केट के हिसाब से खेती करेंगी यशी

3 बीघा में प्राकृतिक खेती कर रही यशी अब मार्केट के हिसाब से खेती करने का मन बना रही हैं। उन्होंने बताया कि पिछले एक साल में वह प्राकृतिक खेती से ब्रोक्ली, आलू, मटर, फूल व पत्ता गोभी से 2 लाख की आय कमा चुकी हैं। कोरोना काल से उनकी बाजार के प्रति समझ बढ़ी है और अब वे बाजार की खपत के हिसाब से अलग-अलग तरह की फसलें लगाएंगी ताकि फसल बेचने की समस्या खत्म हो जाए। प्राकृतिक खेती के नतीजों को देखते हुए वह इस खेती के अधीन क्षेत्र बढ़ाने के साथ प्राकृतिक तौर पर एग्जॉटिक वेजिटेवल और सेब लगाने की योजना पर विचार कर रही हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here