
सुंदरनगर : आजाद भारत के इतिहास में सेना के जवानों ने दुश्मनों के साथ बहुत से युद्ध लड़े और हर युद्ध में हिमाचल प्रदेश के जवानों ने दुश्मनों के हमले का डटकर सामना किया है। जब भी देवभूमि हिमाचल के वीर जवानों की बात आती है तो इनका नाम सबसे पहले पुकार जाता है प्रदेश के कई वीर जवानों ने देश की आजादी में अपनी जान गवाई हैं और इन वीर शहीदों के नाम पर सरकार ने कई घोषणाएं भी की लेकिन जो दो दशक बीत जाने के बाद भी अधूरी है देश पर मर-मिटने वालों के घरों तक सड़कें भी नहीं पहुंच पाई है इसके साथ बहुत सी ऐसी सुविधा है जो आज तक शहीदों के परिवारो को नहीं मिल पाई है। कारगिल युद्ध में मंडी जिला की नाचन विधानसभा क्षेत्र के राजेश चौहान, जगदीश और गुरदास को शहादत मिली थी और श्याम लाल आतंकियों के साथ लोहा लेते समय जम्मू कश्मीर में शहीद हुए थे। इनके नाम पर सरकार द्वारा घर तक सड़क, स्कूल को शहीदों के नाम का दर्जा, गांव में स्वास्थ्य केंद्र खोलने जैसी कई घोषणा की गई लेकिन दो दशक बीत जाने के बाद भी कोई घोषणा पूरी नहीं हो पाई है। आज स्वतंत्रता दिवस के मौके पर मंडी जिला की नाचन विधानसभा क्षेत्र के चार शहीदों के बलिदान से अपने पाठकों को रूबरू करवाने जा रहा है।
आखिर सरकार क्यों बोली शहीद राजेश चौहान की कुर्बानी :
वर्ष 1999 में जम्मू-कश्मीर के कारगिल में पाकिस्तानी सेना के साथ लोहा लेते हुए नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत चौक के रहने वाले 24 वर्षीय राजेश चौहान ने वीरगति प्राप्त की थी, राजेश चौहान वर्ष 1995 में 24 पंजाब में भर्ती हुए थे और मात्र 4 वर्ष उपरांत ही देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया। राजेश के शहीद होने की खबर के सदमे के दो वर्ष बाद उनके पिता दया राम की भी मृत्यु हो गई। शहीद होने के बाद सरकार द्वारा शहीद के घर तक सड़क मार्ग तो निकाल दिया गया। लेकिन 21 वर्ष बीत जाने के बावजूद उनके नाम की पट्टिका नहीं लग पाई है वहीं सरकार द्वारा शहीद की याद में धनोटू चौक पर पार्क और स्मारक बनाने का वायदा भी राजनीति का शिकार होने के कारण आज तक अधूरा ही रह गया। जिसको लेकर इनके परिवार के सदस्यों व क्षेत्र की जनता को घोषणाएं पूरी ना होने के कारण आज भी मलाल है।
क्या है शहीद जगदीश कुमार मई कुर्बानी की दास्तां :
नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत छात्तर के कंडयाह गांव निवासी शहीद जगदीश कुमार ने कारगिल युद्ध में अपने प्राणों की आहुति दी थी। जगदीश ने वर्ष 1994 में सेना की 4 डोगरा में तैनाती पाई थी और कारगिल की लड़ाई लड़ने वाले इस वीर योद्धा को 31 जुलाई 2000 में कश्मीर के गुरेज सेक्टर में वीरगति प्राप्त हुई थी। सरकार द्वारा शहीद के घर तक सड़क तो पहुंचा दी है। लेकिन सड़क आजदिन तक पक्की नहीं हो पाई है, सरकार के किए गए वायदे के बावजूद सड़क मार्ग को शहीद का नाम तक नहीं मिल पाया है, सरकार की शहीदों के प्रति उदासीनता के चलते अपने खर्च पर गांव के एंट्री प्वाइंट पर शहीद जगदीश कुमार के नाम का गेट बनाया है, वहीं वादे को लेकर सरकार द्वारा साई स्कूल का नाम भी शहीद के नाम भी किया गया है।
आखिर सरकार क्यों भूली शहीद गुरदास की कुर्बानी :
कारगिल में शहीद हुए ग्राम पंचायत दयारगी के छलखी गांव के रहने वाले शहीद गुरदास की उम्र 35 वर्ष थी। उन्होंने सेना की आर्टिलरी बटालियन में भर्ती होने के बाद 31 जुलाई 1999 को शहीदी प्राप्त की थी। शहीद के परिवार के साथ सरकार ने स्थानीय स्कूल का नाम, स्वास्थ्य केंद्र खोलने, प्रतिमा लगाने और घर तक सड़क का वादा किया था। लेकिन 21 वर्ष बीत जाने के बाद भी ये सम्मान शहीद और इसके परिवार को नहीं मिल पाया है परिवार को आज भी वीर शहीद के नाम पर किए वादे पूरे होने की आस है।
क्या थी शहीद श्याम लाल की कुर्बानी :
नाचन विधानसभा क्षेत्र की ग्राम पंचायत अप्पर बैहली के गांव लोअर बैहली से चौथे शहीद श्याम लाल का परिवार भी अपने वीर शहीद सपूत के नाम का एक बोर्ड लगने का इंतजार कर रहा हैं वर्ष 1995 में 6 पैरा कमांडो रेजिमेंट में भर्ती हुए श्याम लाल मात्र 24 वर्ष की आयु में 30 मई 2001 को श्रीनगर के सूरनकोट में आतंकियों के साथ लोहा मनवाते हुए शहीद हो गए थे, शहीद के परिवार को मुआवजा तो मिला लेकिन सरकार द्वारा शहीद के परिवार को दी जाने वाली अन्य सुविधाएं आजदिन तक नहीं मिल पाई हैं, सरकार ने शहीद के नाम पर एक हेंडपंप तो लगा दिया लेकिन उसमें से भी मटमैला पानी निकलता है। हैरानी की बात यह है कि शहादत के 19 वर्षों बाद भी शहीद के गांव व घर को जाने के लिए रास्ते पर शहीद के नाम का एक बोर्ड तक नहीं लग पाया है परिवार ने अमर शहीद श्याम लाल के नाम से रास्ता और स्मारक बनाने की गुहार केंद्र व प्रदेश सरकार से लगाई है।