संस्कारित व्यक्ति ही संस्कृति से जुड़ सकता है : आचार्य कुलदीप आर्य

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राज्यपाल आचार्य देवव्रत की पहल पर राजभवन शिमला में वाल्मीकि रामायण पर आधारित संगीतमय श्री राम चरित चिन्तन सत्र के तीसरे दिन हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव बी. के. अग्रवाल ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। उन्होंने राज्यपाल की उपस्थिति में दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम का विधिवत शुभारम्भ किया। इस अवसर पर मुख्य सचिव ने प्रख्यात मनीषी एवं प्रखर वक्ता आचार्य कुलदीप आर्य और उनकी मण्डली को सम्मानित भी किया।  इस अवसर पर, राज्यपाल की धर्मपत्नी दर्शना देवी भी उपस्थित थी। भजन संध्या का आगाज़ राज्यपाल की पौत्री वरेण्या की प्रस्तुति से हुआ। मनीषी एवं प्रखर वक्ता कुलदीप जी आर्य ने रामायण चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि मानव जन्म अनमोल है और इस जीवन में जो व्यक्ति ईश्वर के स्मरण को भूल जायें तो पतन निश्चित है। इसलिए भगवान का चिंतन जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिये तभी जीवन सफल है। राजा दशरथ और माता कौशल्या ने जो संस्कार अपने पुत्र को दिए, हर माता-पिता को वह संस्कार देने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्कार से जो व्यक्ति जुड़ेगा वही संस्कृति से जुड़ पाएगा। संस्कृति में ही संस्कार बस्ते हैं और देश का गौरव संस्कृति में बचा रहता है। यही संस्कार और संस्कृति की शिक्षा सबसे पहले श्री राम को माता-पिता से मिली। मुनि विश्वामित्र के आश्रम में शिक्षा प्राप्ति के दौरान वैदिक संस्कृति की रक्षा के लिए श्री राम ने धार्मिक अनुष्ठान व यज्ञ में विघन डालने वाले राक्षसों का वध किया। अतीत में हमारी संस्कृति की रक्षा के लिए अनेक ऋषि-मुनियों व महापुरुषों के योगदान के कई संदर्भ मिलते हैं। 


उन्होंने कहा कि धर्म की रक्षा में बलिदान होने वाले अमर हो जाते हैं। इस वैदिक संस्कृति, श्री राम और श्री कृष्ण की संस्कृति की रक्षा के लिए स्वामी दयानंद के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने समाज को जगाने का काम किया। मन, कर्म और वचन से जो व्यक्ति एक होता है वही राष्ट्र उन्नति में योगदान कर पाता है। 15 वर्ष की उम्र तक श्री राम के व्यक्तित्व और शौर्य की चर्चा चारों ओर थी। और श्री राम इन संस्कारों से परिपूर्ण थे। 
इस अवसर पर अनेक गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे। 

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