प्रदेश सरकार के हिमाचल प्रदेश की सीमाओं को खोलने के निर्णय को लेकर उच्च न्यायालय में चुनौती दे दी गई है। अधिवक्ता अनूप रत्न ने सरकार के इस फैसले को लेकर याचिका डाली है। मामला चीफ जस्टिस अनूप चिटकारा अधीनस्थ है और जिसकी सुनवाई अब 20 जुलाई को होगी। लोगों में सीमाएं खोलने को लेकर असंतोष साफ नजर आ रहा था और कहीं न कहीं डर का भी माहौल तैयार हो गया था।
सरकार ने खोली सीमाएं:
प्रदेश सहित पूरे देश में अनलॉक -2 लागू करने के बाद सरकार ने हिमाचल की सीमाओं को अन्य राज्यों के लोगों की आवाजाही के लिए खोल दिया। जिस कारण प्रदेश में पर्यटक आने-जाने की राहें खोल दी। सरकार ने कुछ दिशा निर्देशों और शर्तों के साथ पर्यटकों को हिमाचल आने की अनुमति दे दी। जिसके अंतर्गत पर्यटकों को हिमाचल आने के लिए 72 घंटे पहले कोविड-19 टेस्ट करवाना अनिवार्य किया गया और एक ही स्पॉट पर 5 दिन होटल में रहना भी तय किया गया और हिमाचल सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस को आवश्यक रूप से फॉलो करना होगा।
लोगों में पनपा असंतोष:
प्रदेश में सरकार के इस फैसले से बाहरी राज्यों से बड़ी संख्या में लोगों ने प्रवेश लिया। राजधानी शिमला की सड़कों में भी पर्यटक घूमते नजर आए। इससे से राजनैतिक गलियारों सहित आम जनता और अन्य व्यापारिक समूहों में असन्तुष्टि और नाराजगी पनपने लग गई। साथ ही लोगों को संक्रमण का खतरा भी सताने लग पड़ा। लोगों ने सरकार के इस निर्णय के खिलाफ अपनी नाराजगी जताते हुए कहा कि सरकार ने जनता के 190 दिनों के किए कराए पर पानी फेर दिया। लोग अभी तक अपने घरों से सिर्फ इसीलिए बाहर नहीं निकल रहे थे कि कोविड -19 के संक्रमण का खतरा कम हो सके लेकिन सरकार ने यह फैसला ले कर संक्रमण की संभावनाओं को और अधिक बढ़ा दिया। लोगों का कहना है कि प्रदेश की जनता ने अब तक घरों में खुद को बंद कर सरकार के दिशानिर्देशों का पूरी तरह से पालन किया है लेकिन अब बाहरी राज्यों के लोगों को अंदर प्रवेश करने की इजाजत देकर कोरोना को न्योता दिया है। वहीं पर्यटन से जुड़े तमाम लोगों ने सरकार के इस निर्णय को जनता विरोधी बताया।
इसी असंतोष और डर के चलते अब यह मामला उच्च न्यायालय पहुंच गया है। अब देखना यह है कि उच्च न्यायालय इस संबंध में क्या रुख इख्तियार करता है? क्या उच्च न्यायालय सरकार के इस निर्णय पर रोक लगाएगी या फिर जनता को राहत देगी ? फिलहाल यह अभी 20 जुलाई की सुनवाई के बाद ही पता चलेगा लेकिन अभी इस मसले को लेकर जनता में असन्तुष्टि है और यही वजह रही कि मामला उच्च न्यायालय पहुंच गया।