सूखाग्रस्त क्षेत्र के लिए संजीवनी बनी प्राकृतिक खेती

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By- Raman Kant

काजा विकास खंड के डैमुल से संबंध रखने वाले आंगद्वी ने प्राकृतिक खेती से जिले में अपनी पहचान कायम की है। खेती को जीविकोपार्जन का जरिया बनाने वाले आंगद्वी ने 2018 में प्राकृतिक खेती का दामन थामा और आज उन्होंने अपनी मेहनत के बूते सफल किसान के रूप में पहचान बनाई है।

सफल प्राकृतिक खेती किसान आंगद्वी, काजा, लाहौल-स्पीति

आंगद्वी ने बताया कि वह खेती में नए प्रयोग करने के शौकीन हैं और इसके चलते वह कृषि अधिकारियों लगातार संपर्क में रहते हैं। 2018 में उन्हें ब्लॉक से प्राकृतिक खेती के बारे में पता चला। इसके बाद कृषि विभाग की ओर से वह प्राकृतिक खेती के प्रशिक्षण शिविर के लिए नामित हुए। मन में इस खेती के प्रति जिज्ञासा और सवाल लेकर वह  कुफरी में पदमश्री सुभाष पालेकर जी के प्रशिक्षण शिविर का हिस्सा बने। 6 दिन के प्रशिक्षण में उन्हें अपने सवालों के जबाव और प्राकृतिक खेती विधि की जानकारी मिली।

आंगद्वी के खेत में मटर की फसल

घर आकर उन्होंने दोगली नस्ल की गाय के गोबर और गौमूत्र से बनाए विभिन्न आदानों का खेतों में छिड़काव करना शुरू कर दिया। खेत में लगाई मटर और आलू की फसल पर उन्होंने पालेकर जी के बताए अनुसार प्रयोग किया। इससे उन्हें दोनों सब्जियों की गुणवत्तायुक्त फसल मिली। इसके बाद उन्होंने अन्य फसलों को भी प्राकृतिक विधि से उगाना प्रारंभ कर दिया और साल दर साल इस खेती के अधीन क्षेत्र को भी बढ़ाया।

आज आंगद्वी 10 बीघा क्षेत्र में प्राकृतिक तरीके से खेती कर रहे हैं। इस साल उन्होंने साढ़े 4 बीघा क्षेत्र में मटर की खेती की थी जिसकी उन्हें 50 बोरी पैदावार मिली है जो पहले के मुकाबले ज्यादा है। कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन के बावजूद उन्हें औसतन 75 रूपए प्रति किलो की दर से रेट मिला है। मटर और आलू के साथ वह अपने खेतों से जौ, मूली और शलगम की फसल भी ले रहे हैं। आंगद्वी ने खेत से विभिन्न फसलें बेचकर 1 लाख 60 हजार की आय कमाई है।

प्राकृतिक विधि से तैयार मटर की फसल

आंगद्वी कहते हैं कि यह विधि पानी की कमी से ग्रस्त उनके क्षेत्र के लिए संजीवनी बनकर उभरी है। प्राकृतिक खेती से हम कम पानी में भी कई फसलें एक साथ ले पाने में सक्षम हुए हैं। पारंपरिक आलू और मटर के साथ अब हम अन्य फसलें भी उगा रहे हैं।  

इस कठिन भौगोलिक क्षेत्र में आंगद्वी प्राकृतिक खेती का स्वतः प्रसार कर रहे हैं। वह अपने आस-पास के 10 गांवों में कैंप लगाकर किसानों को इस विधि के प्रति जागरूक कर चुके हैं। क्षेत्र के कुछ किसान इनके मार्गदर्शन में प्राकृतिक खेती तकनीक का अपनी जमीन पर प्रयोग कर रहे हैं। 

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