चिलगोजा और जंगली मशरूम के संरक्षण में एचएफआरआई के वैज्ञानिकों का अहम योगदान

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किन्नौर क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय गुणों से भरपूर चिलगोजा और जंगली मशरूम के संरक्षण और उनके दोहन के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों को लेकर हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान शिमला के वैज्ञानिकों ने किन्नौर वन मंडल के अधिकारियों और लोगों को महत्वपूर्ण जानकारियां दी। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्राधौगिकी विभाग, नई दिल्ली के सौजन्य से आयोजित इस जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम में 12 मार्च को रिकांगपीओ, 13 को आकपा और 14 मार्च को छोलतू (टापरी) में लोगों को महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के वैज्ञानिक ड़ा. अश्वनी तपवाल, ने किन्नौर जिले में पाई जाने वाली जंगली मशरूम के बारे में विस्तार से व्यख्यान दिया। उन्हांेने किन्नौर वन मंडल के अधिकारियों, फील्ड स्टाफ और स्थानीय लोगों को जिला किन्नौर के मुख्यतः खाद्य मशरूम में पाये जाने वाले पौष्टिक तत्वों एवं औषधीय मशरूमों के गुणों से भी प्रशिक्षणार्थियों अवगत किया। उन्होंने कहा कि लोेेगों को इन जंगली मशरूम की पहचान करना आने के साथ इनके संरक्षण के लिए आगा आना चाहिए ताकि इन्हें भविष्य के लिए भी संजो कर रखा जा सके। इस मौके पर कुमारी नेहा शर्मा ने मशरूमों से बनाए जाने वाले उत्पाद जैसे कि आचार, चटनी, सूप, जैम इत्यादि के बारे में बताया।


प्रशिक्षण कार्यक्रम के शुभारम में वन मंडल अधिकारी ड़ा चमन लाल राव ने कहा की चिलगोजा किन्नौर क्षेत्र के पारिस्थितिकी, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से प्रमुख शंकुधारी प्रजाति है, जिसका संरक्षण अति आवश्यक है। उन्होंने कहा कि किन्नौर वन क्षेत्र में विभिन्न प्रकार के मशरूम पाए जाते हैं, जोकि स्थानीय लोगों के आजीविका का महत्वपूर्ण साधन है। हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला के वैज्ञानिक पीतांबर सिंह नेगी ने चिलगोजा के पारंपरिक एवं औषिधीय उपयोग, संरक्षण, पौधशाला एवं रोपण तकनीक पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि चिलगोजा एक बहुमूल्य वृक्ष है जिसका वितरण बहुत ही सिमित है। अतः इसके दोहन के समय वैज्ञानिक तकनीकों को अपनाए तथा अनावश्यक शाखाओं की कटाई न करें ताकि भविषय की पीढ़ी के लिए इस बहुमूल्य पेड़ को बचाया जा सके। कुमारी अर्चना नेगी ने चिलगोजा के संरक्षण हेतु विभिन्न तरकीबों पर चर्चा की।

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