
कठीन परिस्थितियों और कम खाने की स्थिति में भी अच्छी तरह सर्वाइव करने वाली हिमाचली पहाड़ी गाय को अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। हिमाचल प्रदेश की इस नस्ल को नेशनल ब्यूरो आफ एनीमल जैनेटिक रिसोर्सिज ने देश की मान्यता प्राप्त गाय की नस्लों की सूचि में शामिल कर लिया है। हिमाचली पहाड़ी गाय का पंजीकरण हिमाचली पहाड़ी नाम से एक अधिकारिक नस्ल के रूप में किया है, जिससे कि अब यह नस्ल देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे थारपारकर, साहिवाल, रेड सिन्धी, गिर जैसी नस्लों की श्रेणी में शामिल हुई है। राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिलने के बाद विलुप्ती की कगार पर पहुंच चुकी इस नस्ल के सरंक्षण के साथ नस्ल सुधार के कार्याें को बल मिलेगा। गौर रहे कि पिछले तीन दशकों में हिमाचल प्रचलित ब्रिडिंग पाॅलिसी में हिमाचली पहाड़ी नस्ल की गायों को अधिक दूध के लिए जर्सी नस्ल से क्रास ब्रीड किया जा रहा है, जिससे पहाड़ी नस्ल की गायों की संख्या में कमी आ रही है। लेकिन अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने से अब इस नस्ल की गाय के जर्म प्लाज्म कंजर्वेसन के लिए प्रोजेक्ट मिल सकेंगे। बिते वर्ष पहाड़ी नस्ल की गाय को संरक्षित करने के लिए हिमाचल सरकार ने केंद्र सरकार को 9.13 करोड़ का प्रोजेक्ट भेजा था, लेकिन पंजीकरण न होने के चलते इसे मंजूरी नहीं मिल पाई थी, लेकिन अब पंजीकरण होने के साथ ही केंद्र सरकार से इस प्रस्ताव को मंजूरी मिलने के साथ ही पशुपालन विभाग ने जिला सिरमौर के बागथन में पहाड़ी गाय के संरक्षण संस्थान के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। इससे पहाड़ी नस्ल की गाय के संरक्षण को काफी हद तक बल मिलेगा।
पहाड़ी गाय के पंजीकरण के बाद नस्ल सुधार के लिए केंद्र सरकार की ओर से मिलने वाले बजट का सीधा लाभ हिमाचल के किसानों और दूध का काम करने वाले लोगों को होगा। क्योंकि जब कम देखरेख और कम चारे में गुजारा करने वाली ये गायें अधिक दूध देंगी तो गायों को कम दूध देने की वजह से खुला छोड़ देने वाले पशुपालकों की संख्या में कमी आएगी। जब लोगों को लगेगा कि ये गायें भी अन्य गायों थारपारकर, रेड सिंधी और गिर की तरह दूध उत्पादन दे सकेंगी तो उन्हें इन्हें पालना फायदे का सौदा लगेगा और वे इन्हें खुला नहीं छोड़ेगें। इससे खेती को पहुंचने वाला नुकसान भी कम होगा। वहीं दूसरी ओर इन पहाड़ी नस्ल की गायों के बछड़ों को सीमन कलेक्शन के लिए पालने का काम शुरू किया जाएगा। इससे भी उन्हें बेसहारा नहीं छोड़ा जाएगा।

हिमाचली पहाड़ी गाय के पंजीकरण के लिए पशुपालन विभाग को दो साल तक चली लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। पशुपालन विभाग ने इस गाय को मान्यता प्राप्त नस्लों की श्रेणी में शामिल करवाने हेतु इस नस्ल की विशेषताओं को संकलित करके नेशनल ब्यूरो आॅफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्सिज के समक्ष रखा था, तथा समय-समय पर संस्थान द्वारा मांगे गए विवरणों को उपलब्ध करवाकर अब 2 वर्षों के प्रयास के पश्चात इस नस्ल का पंजीकरण हो सका है तथा यह नस्ल देशी नस्ल की गायों में सम्मिलित की गई है। हालांकि पशुपालन विभाग द्वारा इस गाय को गौरी नाम से पंजीकृत करवाने का मामला ब्यूरो को भेजा गया था, परन्तु प्रदेश की देशी नस्ल पहाड़ी नाम से ज्यादा प्रचलित हाने के कारण इस नस्ल का नामकरण हिमाचली पहाड़ी के रूप से किया गया है।
हिमाचल सरकार की ओर से किसानों की आय को दोगुना करने के लिए शुरू की गई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत देसी नस्ल की गायों की खरीद पर सरकार की ओर से 25 हजार रूपये अधिकतम और 50 फीसदी अनुदान दिया जा रहा है। ऐसे में अब पहाड़ी नस्ल की इस गाय की खरीद में भी किसानों को अब सरकार की ओर से अनुदान मिल सकेगा, इससे भी पहाड़ी नस्ल की इस गाय के संरक्षण को बल मिलेगा। हालांकि अभी प्राकृतिक खेती कर रहे ज्यादातर किसान बाहरी राज्यों से गायों की खरीद कर रहे थे और सरकार की ओर से दिये जा रहे इस अनुदान को भी प्राप्त कर रहे थे।

हिमाचल में बेसहारा गायों के सरंक्षण के लिए सरकार की अेार से काउ सेंचुरी का भी प्रावधान किया गया है और इसके लिए हरेक जिले में इस तरह की सेंचुरी बनाने का प्रस्ताव है। इन काउ सेंचुरी के रख-रखाव के लिए सरकार की ओर से शराब की बोतल पर सेल लगाकर बजट का प्रावधान किया है। वहीं कई स्थानों में कोटला, बडोग और अन्य स्थानों में काउ सेंचुरी का निर्माण कार्य पूरा भी हो चुका है। इससे सड़कों और पुलों में घुम रही बेसहारा गायों की संख्या में जरूर कमी देखने को मिलेगी।

वरिष्ठ पशू चिकित्सा अधिकारी और अंतर्राष्ट्रीय एआई एक्सपर्ट डाॅ सूशील सूद ने बताया कि देश की मान्यता प्राप्त गाय की नस्लों की सूची में शामिल होने के बाद हिमाचली पहाड़ी गाय की नस्ल सुधार में बहुत अच्छा काम हो सकेगा। उन्होंने बताया कि पहाड़ी नस्ल की इन गायों में कम पौष्टिक चारे की अवस्था में अभी अच्छा दूध देने की क्षमता है। इसके अलावा इस नस्ल की गाय को किसी भी परिस्थिति में आसानी से पालने के साथ इनमें बीमारियों से लड़ने की उच्च क्षमता होने की वजह से इनके रखरखाव में ज्यादा खर्च नहीं करना पड़ता है। पहाड़ी नस्ल की गायों की एक खासियत यह भी है कि इन्हें यदि चरने के लिए छोड़ा जाए तो ये अपने आप ही आस-पास के क्षेत्र में चरने के साथ अपना पेट भर लेती हैं और इससे इनकी दूध देने की क्षमता में भी किसी प्रकार का असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा इन गायों में अन्य जर्सी और होलस्टीन नस्ल की गायों की अपेक्षा में गर्भधारण करने की अधिक क्षमता होती है।