राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने वैज्ञानिकों से शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर व्यापक अनुसंधान करने तथा कृषक समुदाय के हितों की रक्षा के लिए नई कृषि तकनीक विकसित करने का आहवान किया है। राज्यपाल आज कांगड़ा जिला के चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के 14वें दीक्षान्त समारोह में बोल रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने विद्यार्थियों को 343 डिग्रियां, 90 प्रशस्ति पत्र तथा 22 स्वर्ण पदक प्रदान किए।
उन्होंने डिग्री तथा स्वर्ण पदक प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को बधाई दी और उनसे राज्य तथा देश की निःस्वार्थ भाव से सेवा करने का आग्रह किया। उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में भीतर प्रदर्शन के लिए विशेषकर छात्राओं को बधाई दी और संतोष जाहिर किया कि 343 डिग्री प्राप्तकर्ताओं में 222 लड़कियां हैं।
राज्यपाल ने कहा कि भारत प्राचीन समय से ही कृषि प्रधान देश रहा है, जहां ग्रामीण स्तर पर कुटीर उद्योग थे, जो लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिसे पर्याप्त थे। लेकिन समय के साथ परिस्थितियां भी बदली हैं और यह चिंता की बात है कि आज किसान आत्महत्या कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ऐसी व्यवस्था स्थापित कर जहां किसानों को कृषि गतिविधियों के लिए ऋण लेने की आवश्यकता न पड़े तथा शून्य लागत प्राकृतिक खेती को अपनाकर कृषि क्षेत्र में सुधार लाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती स्वस्थ पर्यावरण के लिए अनुकूल है। उन्होंने कहा कि रासायनिक कृषि से प्राकृतिक कृषि में परिवर्तन करना बहुत जरूरी है, क्योंकि रसायनों से मिट्टी की उपजाऊ क्षमता समाप्त हो रही है और खेतीबाड़ी में बड़ी मात्रा में इनके उपयोग से अनेक स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं, जो चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र को मजबूत करने में वैज्ञानिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने वैज्ञानिकों से निष्ठा एवं समर्पण की भावना से कार्य करने का आग्रह किया, क्योंकि यह क्षेत्र आर्थिकी की रीढ़ है।
उन्होंने कहा कि यदि वैज्ञानिक प्राकृतिक खेती पर कार्य करने के लिए दृढ़ निश्चियी हो तो सिक्किम की तरह हिमाचल प्रदेश को देश का जैविक राज्य बनने से कोई भी नहीं रोक सकता। इससे रसायनिक खादें तथा कीटनाशक बेचने वाली निजी कम्पनियों की मनमानी पर भी अंकुश लगेगा। आचार्य देवव्रत ने विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों से कृषि समुदाय को प्राकृतिक खेती के बारे में शिक्षित करने का आह्वान किया और कहा कि राज्य में मौजूदा खेती के तरीकों में सुधार तथा शून्य लागत कृषि अपनाने के लिए विशेष जागरूकता उत्पन्न की जानी चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से, विशेषकर जैविक खेती में वृहद अनुसंधान करने तथा नई तकनीकों को अपनाने के साथ-साथ मौजूदा तकनीकों में सुधार करने को कहा। उन्होंने कहा कि प्रयोगशालाओं में किया गया अनुसंधान खेतों तथा किसानों तक पहुंचना चाहिए। उन्होंने देसी गायों की नस्ल में सुधार लाने पर भी बल दिया।
हि.प्र. विधानसभा के अध्यक्ष श्री बृज बिहारी लाल बुटेल ने सभी डिग्री प्राप्त करने वालों को बधाई दी और राज्य को सुदृढ़ करने के लिए समर्पण भाव से कार्य करने तथा राज्य में कृषि गतिविधियों में सुधार के लिए अपने ज्ञान का सदुपयोग करने का आहवान किया। उन्होंने कहा कि कृषि आधारित गतिविधियों के माध्यम से 62 प्रतिशत रोजगार सृजित किये जा रहे हैं, जो राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में 10 प्रतिशत का योगदान भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार द्वारा किसानों की आर्थिकी को मजबूत करने के लिए कृषि क्षेत्र में फसल विविधिकरण योजना, डॉ. वाई.एस. परमार, किसान स्वरोजगार योजना, नकदी फसलों की पैदावार तथा जैविक खेती प्रोत्साहन जैसे अनेक कार्यक्रम तथा नीतियां कार्यान्वित की जा रही हैं। उन्होंने कहा कि राज्य ने खाद्यान्न उत्पादन में ‘कृषि कर्मण्य पुरस्कार’ प्राप्त किया है।
चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने राज्यपाल का स्वागत किया तथा विश्वविद्यालय की विभिन्न क्षेत्रों में उपलब्धियों एवं गतिविधियों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय बनने के उपरांत 6593 विद्यार्थी यहां से पढ़कर निकले हैं। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक सत्र 2017-18 के दौरान बीवीएससी एंड एएच व बीएससी (ऑनर्स) कृषि कार्यक्रम में कुल 137 सीटों के लिए रिकार्ड 13613 उम्मीदवारों ने आवेदन किया। इस अवधि के दौरान भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा आयोजित विभिन्न राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगी परीक्षाओं में 191 विद्यार्थी उर्त्तीण हुए।
पालमपुर विश्वविद्यालय के कुल सचिव श्री सतीश कुमार शर्मा ने कार्यवाही का संचालन किया। अध्ययन अधिष्ठाता डॉ. पी.के. मेहता ने धन्यवाद प्रस्ताव रखा। इससे पूर्व, राज्यपाल ने विश्वविद्यालय परिसर में मिशलिन चैंपकश का पौधा भी रोपित किया।