
रोजी-रोटी के लिए शहरों और बाहरी राज्यों को पलायन करने वाले लोगों के लिए कोरोना ने फिर से खोले रास्ते
वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण का भय गांव और खेतों के लिए संजीवनी बूटी के तरह काम कर रहा है। रोजी-रोटी की तलाश में गांव से दूर शहरों और बाहरी राज्यों में काम की बाट जोह रहे लोग कोरोना संक्रमण के कारण लाॅकडाउन की वजह से वापस गांव में पहुंच गए हैं। ऐसे में विरान जैसे पड़े गांव में अब जैसे प्राण से आ गए हैं और खाली रह कर उक्ता चुके शहरी मजदूरों ने अब खेतों की ओर रूख करते हुए वर्षाें से बंजर पड़े खेतों को हरा भरा करना शुरू कर दिया है। हिमाचल में अभी तक बाहरी राज्यों से हजारों लोग अपने गांवों में पहुंच चुके हैं और लाखों लोग अभी भी अपने-अपने गांव तक पहुंचने के लिए ट्रैवल पास के इंतजार में हैं। गौर रहे कि हिमाचल सरकार की ओर से अन्य जिलों और बाहरी राज्यों में फंसे हिमाचलियों को उनके गांवों तक पहुंचने का मौका देने पर केवल तीन दिनों में 3 लाख 60 हजार लोगों ने पास के लिए आनलाइन आवेदन कर डाला था और महज दो दिनों में 90 हजार लोगों के लिए पास जारी किए गए थे। सरकार की ओर से देश के विभिन्न राज्यों में फंसे हिमाचलियों को वापस उनके गांव तक पहुंचाने के लिए कोशिशें तो की जा रही हैं, लेकिन हिमाचल से बाहर भारी संख्या में लोगों के होने के चलते इन्हें उनके घर-गांव तक पहुंचाने के लिए सरकार को भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं बाहरी राज्यों से आने वाले लोगों के साथ संक्रमण भी प्रदेश में प्रवेश न कर पाए इस बात का विशेष ध्यान भी सरकार को रखने की जरूरत है। इसके अलावा बाहरी राज्यों और शहरों से लौटे लोगों को गांवों में रोजगार मुहैया करवाने और उन्हें गांव में ही बने रहने के लिए प्रेरित करने की चुनौतियों को सामना सरकारों को करना पड़ रहा है। हालांकि सरकार की ओर से गांव में मनरेगा के कार्य दिवसों में बढ़ोतरी करने के साथ गांवों में भवन निर्माण और अन्य निर्माण कार्याें में लोगों को काम करने की अनुमति दी गई है। लेकिन क्या ये सब इंतजाम लोगों को गांव से जोड़े रखने के लिए काफी हैं ये देखने वाली बात होगी।

खाली रहने से बेहतर, खेतों में काम करना
गांव में लौटे लोग भले ही देश-विदेश में किसी भी पद पर काम कर रहे हों लेकिन गांव में पहुंचने के बाद इन लोगों ने खाली बैठने से खेतों में काम करना बेहतर समझा है। बाहरी राज्यों और देशों से लौटे लोगों का हिमाचल के गांवों में आगमन ऐसे समय में हुआ है जब गेहूं की कटाई का काम शुरू होने वाला था और इसके बाद सब्जियां लगाने के साथ धान की बीजाई के लिए भी खेतों को तैयार करने का काम शुरू हो गया है। दुबई के मंहगे होटल में काम करने वाले विनोद कुमार इन दिनों खेतों में खुब पसीना बहा रहे हैं। विनोद का कहना है कि कोरोना संक्रमण के फैलने के चलते वे अपने वतन वापस आ गए थे और होम क्वारटाइन में रहने के बाद वे घर में बैठे-बैठे बोर हो गए थे, इसलिए सोचा अपनी पुश्तैनी जमीन में कुछ उगाया जाए। विनोद सहित गांव में पहुंच चुके लाखों लोगों ने अपने खेत-खलीहानों में उगी झाडियों को साफ करके उनमें सब्जियों को उगाना शुरू कर दिया है। इन शहरी मजदूरों का कहना है कि वे अपने खेतों में खुब मेहनत कर रहे हैं ऐसे में जब सब्जियां लगना शुरू होंगी तो उन्हें एक अलग ही खुशी अनुभव होगा।
गांव में लौटे शहरी मजदूरों ने गांव में मरणासन्न अवस्था में पड़े पानी के स्त्रोतों बावडियों और कुओं में भी नई जान डाल दी है। इसके अलावा पुराने घरों की मरम्मत के साथ गांव के रास्तों का रखरखाव होने से गांव अब गांव की तरह लग रहे हैं। पनघट में अब पानी भरने का शोर वापस लौट आया है, लेकिन क्या ये सब लाॅकडाउन की अवधि तक ही है या इसके बाद भी लोग गांव में रहना पसंद करेंगे। इसके लिए सरकारों को चाहिए कि गांव में रोजगार के अवसरों को पैदा करे और कृषि-बागवानी क्षेत्र के उत्थान के लिए नए सिरे से सोचे ताकि कृषि घाटे का सौदा न बनकर युवाओं के लिए रोजगार का अहम क्षेत्र बने जैसे कि कुछ दशक पहले था।