सियासत का अनुराग…

    0
    1268
    केंद्रीय राज्य वित्त मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ संपादक हेमन्त शर्मा

    सियासी लोग इस पोस्ट में सियासत भी तलाश सकते हैं। कारण, दो हफ्ते पहले मैनें इस पेज पर हिमाचल के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल जी का जिक्र किया था और आज उनके पुत्र अनुराग ठाकुर का कर रहा हूं। बीजेपी कार्यसमिति की बैठक के बाद कल संयोग से मिलना हो गया। इससे पहले अनुराग 2018 में अखबार के ऑफिस आए थे। उसके बाद न मिलना हुआ न ऐसा बैठना। देश के वित्त राज्यमंत्री हैं। बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष भी। किसी क्षेत्र या व्यक्ति की पहचान कई कारणों से बदलती रहती है। मसलन धर्मशाला का पहला पता था दलाई लामा और अब नया पता है एचपीसीए स्टेडियम। इसी तरह अनुराग ठाकुर की पहचान भी निरंतर बदलती रही है। मैं क्या कहना चाह रहा हूं,बहुत लोग समझ गए होंगे।
    मैं बांह पकड़ कर आपको 2006 तक ले जा रहा हूं। दैनिक भास्कर अखबार में चंडीगढ़ से मेरा तबादला जालंधर हुआ था जहां मुझे पंजाब की राजनीति पर काम करना था। एक दिन किसी रिपोर्टर ने बताया कि हिमाचल के पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल की प्रेस कांफ्रेस थी और मेरा जिक्र हुआ। मेरी बात भी अपने फोन से करवा दी। कहा घर आना। यहां नए हो तो अनुराग आपको ले आएंगे। मैं तब तक अनुराग ठाकुर से नहीं मिला था। खैर एक बार ये मुझे लेने आए तो मैं नहीं मिला। एक बार मैं उनके घर की ओर गया तो वो नहीं मिले। लब्बोलुआब यह कि मुलाकात ही नहीं हुई। बाद में अनुराग युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। मेरा तबादला भी जम्मू-कश्मीर हो गया। बीच में इक्का-दुक्का बार फोन पर बात जरूर हुई। फिर एक दिन फोन आया कि जम्मू में आडवाणी जी की रैली है सो मिलेंगे। कहा मेरा भाषण पहले हो जाएगा और मैं निकल जाऊंगा। दिल्ली जरूरी काम से जाना है। जम्मू एयरपोर्ट पर मिलते हैं। वहां करीब डेढ़ घंटे का समय रहेगा। लंच भी करेंगे। वही हुआ। मतलब हमारी पहली मुलाकात जम्मू एयपोर्ट पर हुई। लंबी बात हुई। लगा कि बंदे में दम तो है। उसके बाद बहुत से घटनाक्रम हुए।
    लंबे अरसे बाद फिर 2013 में एचपीसीए के स्टेडियम में ही मिलना हुआ। स्टेडियम के मेन गेट पर एक पौधा लगाया था। फिर बीसीसीआई के अध्यक्ष बने। पिछले लोकसभा चुनाव से पहले हमारे ऑफिस में ही मिलना हुआ था और उसके बाद कल।
    अनुराग को तरक्की की सीढिय़ां चढ़ते हम सभी ने देखा है। यह रफ्तार गुजिश्ता सालों में बढ़ी ही है। हम किसी सियासी चश्में से ही देखेंगे तो बहुत से खोट भी दिखते हैं। देखने भी चाहिए। लेकिन कुछ बातें इससे अलग भी होती हैं। बहुतों को काम करने के लिए कोई आधार जरूर मिलता है। किसी को नहीं भी मिलना। लेकिन उस बेस के बाद न केवल खुद को साबित करना, बल्कि उससे बहुत आगे बढ़ जाना किसी भी व्यक्ति विशेष की मेहनत व लगन से ही संभव है। अनुराग ठाकुर इसका उदाहरण कहे जा सकते हैं।

    इस लेख के लेखक हेमन्त शर्मा

    संपादक हिमाचल दस्तक है।

    LEAVE A REPLY

    Please enter your comment!
    Please enter your name here