सिंघा ने तर्कों के सींगों पर उठा ली बीजेपी-कांग्रेस

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● दोनों को दे दी हैवी डोज़,जनहित में दिया तगड़ा इंजेक्शन

उदयवीर पठानिया, धर्मशाला बुधवार को सदन से विपक्ष में बैठी कांग्रेस बाहर हुई तो भीतर अकेले माकपा विधायक राकेश सिंघा ने अपने तर्को की मार से बाहर बैठी कांग्रेस को तो घायल किया ही,साथ मे भीतर बैठे सत्ता पक्ष को भी तारे दिखा दिए। राज्यपाल प्रकरण के बाद से सदन में जो गतिरोध बना हुआ है उसकी वजह से पब्लिक इश्यू हाशिये पर चले गए हैं।

सत्ता पक्ष और विपक्ष अपनी-अपनी सुविधाओं के मुताबिक जनहित से दूर सियासी फायदों के जुगाड़ में लगे हुए हैं। ऐसे में सिंघा ने बुधवार को जरूरतों के उन सींगों पर टांग दिया,जिन पर जनता सालों से टंगी हुई है। बढ़ते पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों पर सिंघा ने सरकारी को उसके ही दावों के बोझ तले ही दबा दिया। डबल इंजिन के दावे के जिक्र करते हुए तंज कसा कि जब पेट्रोल-डीजल ही आम आदमी की पहुंच से बाहर है तो इंजिन कैसे चलेगा ? किसके लिए चलेगा ? अब तो एलपीजी भी पसीने छुड़वा रही है। राज्यपाल के अभिभाषण पर आए धन्यवाद प्रस्ताव पर सिंघा ने अकेले ही तर्कों की बौछार से सबको छलनी कर दिया। कोरोनाकाल में हुए भर्ष्टाचार का जिक्र करते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा किया। दस्तावेजों को आधार बनाकर हमले किए।स्कूल फीस वृद्धि,वसूली का जिक्र करते हुए जनता के फिक्र को भी सदन में रखा। बेरोजगारी को लेकर भी खूब लताड़ लगाई।

खैर,सवाल यह उठता है कि सिंघा ने जो काम किया,वह कांग्रेसी विधायक भी तो कर सकते थे ? पांच अन्य विधायकों के निलंबन पर यह एकजुट हो सकते हैं तो साल 2011 की जनगणना के मुताबिक 68 लाख की आबादी इन पांच लोगों के मुकाबले हल्की है ? नहीं। राज्यपाल जनता के भी हैं। पर सत्तापक्ष और विपक्ष भिड़े हुए हैं कि गवर्नर साहब से माफी मांगी जाए। एक तबका सॉरी बोलने को तैयार नहीं है और दूसरा अड़ा हुआ है कि पहले माफी मांगी जाए । क्या कोई जनता से भी सॉरी बोलने का कह रहा है ? न कोई कहेगा न कोई बोलेगा। जनता के हिस्से में गुहार ही आती है,यही गुहार अब भी है। सदन चलाओ,जनहित पर आओ। सिंघा साहब को बधाई जरूरी है, कम से कम उन्होंने इंजेक्शन तो लगाया …💐

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