भाजपा के वृद्ध नेता शांता कुमार द्वारा पार्टी के भीतर फैले भ्रष्टाचार को लेकर पार्टी हाई कमान को लिखी गयी चिट्ठी जहां अब सेल्फ गोल मे बदलती नज़र आ रही है वहीं इसका संक्रमण भाजपा के भीतर अब और गहराता जा रहा है। दरअसल इस चिट्ठी के बहाने शांता ने बर्र के छ्त्ते मे हाथ डाल दिया है जिसका इल्म उन्हें शादय खुद भी नहीं था। बिहार जैसे अहम सूबे के चुनावों के मुहाने पर खड़ी भाजपा को शांता कि इस चिट्ठी से बैकफूट पर जाना पड़ा है। यही वजह है कि उन्हे नाथने का काम आला कमान ने बिहार के ही दो दिग्गज नेताओं रवि शंकर प्रसाद और राजीव प्रताप रुडडी को सौंपा। रुडडी ने हालांकि सौम्य स्वर मे ये कहा कि शांता कुमार कांग्रेस के दुष्प्रचार से भ्रमित हो गए हैं लेकिन रविशंकर प्रसाद ने जिस तरह से शांता कुमार को सबसे पहले वीरभद्र सिंह का भ्रष्टाचार देखने और उसपर बोलने कि सलाह दी उसके कई गंभीर अर्थ हैं।
सूबे मे शांता और वीरभद्र सिंह का प्रेम किसी से छुपा नहीं है। ये शायद दोनों की दोस्ती कि पराकाष्ठा ही थी कि भरे चुनाव मे वीरभद्र सिंह जाते थे शांता के खिलाफ लड़ रहे चंद्र कुमार के प्रचार मे और तारीफ़ें करते थे शांता कुमार की । और शांता ने भी कभी वीरभद्र सिंह पर सीधे प्रहार नहीं किया। उल्टे जब पिछले विधानसभा सत्रों मे वकमुल्ला प्रकरण को लेकर कांग्रेस ने अचानक सत्रावसान का फैसला लिया था तब भी शांता कुमार ने व्यक्तिगत लड़ाई को पार्टी कि लड़ाई नहीं बनाने कि बात कहकर एक तरह से धूमल पर हमला बोला था और वीरभद्र सिंह को सियासी संबल देने कि ही कोशिश कि थी। लेकिन आडवाणी संग योग के बाद हुये कुंडलिनी जागरण के बाद आई उनकी ताज़ा चिट्ठी ने सारे सियासी समीकरण ही पलट डाले हैं। कहाँ तो वो वसुंधरा, शिवराज के बहाने शांता मोदी के करीबी होने चले थे और कहाँ उल्टे अब उन्हीं के निशाने पर आ गए हैं।शिवराज ने तो सार्वजनिक रूप से पत्र लिख शांता कुमार से पूछा है कि क्या उन्हें व्यापम बारे कोई जानकारी भी है या नहीं।?
उधर इस सबसे पार पाने के लिए भाजपा ने जिस तरह से वीरभद्र सिंह को चुना , या शांता विरोधी खेमा चुनवाने मे सफल रहा उसके बाद शांता के सियासी सखा वीरभद्र फिर से सांसत मे हैं। ऊपर से जिस प्रकार मनोरंजन कालिया ने मोर्चा खोला डाला है उससे भी पालमपुर वाले पंडित जी घिर गए हैं। अगर बात और बढ़ी तो शांता कुमार कि मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही बल्कि उनके बहाने सूबे मे भाजपा के भीतर नए समीकरण खड़े करने वाले भी असमय संक्रमण का शिकार हो जाएंगे। सूबे मे एक खेमा बड़ी तेज़ी से धूमल गुट को धकेलने मे शांता कि मदद से सफलता कि सीढ़ियाँ चढ़ रहा था। शांता के ही अंदाज़ मे भाजपा का ये समूह वीरभद्र सिंह से भी सामीप्य बनाए हुये था जो गाहे–बगाहे सार्वजनिक मंचों से परिलक्षित भी हो रहा था। लेकिन अब उस गुट को तो मानो साँप सूंघ गया है। शांता का साथ दे तो आलाकमान नाराज और शांता का विरोध करें तो सूबे मे उनका साथ छूटने का संताप। कुलमिलाकर शांता ने ऐसा संक्रामण फैला दिया है जिसके नतीजे भाजपा के भीतर बाहर के सारे समीकरण बदल सकते हैं।