
हिमाचल प्रदेश में पांच दशक से अधिक समय तक कांग्रेस के पर्याय रहे वीरभद्र सिंह इस चुनाव में भी किंग की भूमिका में होंगे। लोकसभा चुनाव के लिए रणभेरी बजते ही राजनीति के राजा की टीम भी सक्रिय हो गई है। कांग्रेस की हिमाचल प्रभारी रजनी पाटिल ने भी स्पष्ट किया है कि वीरभद्र सिंह अहम प्रचारक होंगे। लाख कारणों के बावजूद कांग्रेस हाईकमान हिमाचल प्रदेश में वीरभद्र सिंह को नजर अंदाज नहीं कर सकता। इसकी झलक भी मिल गई है। हिमाचल की चार सीटों पर जिन प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने के आसार हैं, वे सभी वीरभद्र सिंह खेमे से संबंध रखते हैं। संकेत मिल रहे हैं कि वीरभद्र सिंह समर्थक टिकट वितरण में बाजी मारने जा रहे हैं। प्रदेश की चार सीटों पर जिन नेताओं के नाम की चर्चा है, उनमें सुधीर शर्मा, कर्नल धनीराम शांडिल, अभिषेक राणा व विक्रमादित्य सिंह दौड़ में सबसे आगे हैं। ये सभी वीरभद्र सिंह के खास हैं। शिमला सीट से कर्नल धनीराम शांडिल सशक्त प्रत्याशी हैं।
विनोद सुल्तानपुरी का नाम भी चल रहा है। विनोद सुल्तानपुरी के पिता दिवंगत केडी सुल्तानपुरी के नाम छह बार सांसद रहने का रिकार्ड है। केडी सुल्तानपुरी वीरभद्र सिंह के खास समर्थक थे। केडी सुल्तानपुरी अपनी जनसभाओं में विशेष तौर पर जिक्र किया करते थे कि ये चुनाव मैं नहीं वीरभद्र सिंह लड़ रहे हैं। उस समय हिमाचल में कांग्रेस का दबदबा अधिक था, लिहाजा केडी चुनाव जीतते रहे। उनके बेटे विनोद सुल्तानपुरी को अभी लोकसभा चुनाव की जीत का स्वाद चखना बाकी है। खैर, शिमला से टिकट विनोद को मिले अथवा कर्नल धनीराम शांडिल को, उनकी नैया पार लगाने के लिए वीरभद्र सिंह रूपी पतवार ही काम आएगी।मंडी सीट की बात करें तो यहां से विक्रमादित्य सिंह को टिकट मिल सकता है। कौल सिंह भी रेस में हैं। विक्रमादित्य सिंह के पास मंडी सीट से खोने के लिए कुछ नहीं है। वे चुनाव में हार भी गए तो विधायक रहेंगे ही। फिर पहली बार लोकसभा चुनाव में उतरने से वे अनुभव भी अर्जित कर पाएंगे। ये अलग बात है कि मंडी से उनकी हार वीरभद्र सिंह की प्रतिष्ठा को धक्का जरूर लगाएगी। कारण ये है कि इस बार हिमाचल की सत्ता का केंद्र बिंदु मंडी है और सीएम जयराम ठाकुर के सभी सिपहसालार मंडी में डट कर खड़े रहेंगे। हमीरपुर में कांग्रेस का टिकट अभिषेक राणा झटक सकते हैं। अभिषेक राणा के साथ खास बात ये जुड़ी है कि वो राजेंद्र राणा के बेटे हैं, जिन्होंने कद्दावर नेता प्रेम कुमार धूमल को विधानसभा चुनाव में पटखनी दी है।
हमीरपुर से अनुराग ठाकुर लगातार चुनाव जीत रहे हैं। उनकी स्थिति मजबूत भी है, लेकिन विधानसभा चुनाव में मिले झटके से भाजपा उबरी नहीं है। अभिषेक राणा को टिकट मिलने की स्थिति में वे भी वीरभद्र सिंह के करिश्मे पर अधिक निर्भर होंगे। हालांकि यहां से सुखविंद्र सिंह सुक्खू अथवा मुकेश अग्निहोत्री के नाम की चर्चा भी है। मुकेश नेता प्रतिपक्ष हैं और हाईकमान के पास उन्हें हिमाचल में स्थापित करने का विकल्प है। वे शायद ही केंद्र की राजनीति में जाना पसंद करें। सुखविंद्र सिंह सुक्खू पिछला विधानसभा चुनाव हारे थे। इस बार वे संघर्ष से विधायक बने हैं। वे भी नहीं चाहेंगे कि लोकसभा चुनाव मैदान में उतरा जाए। कांगड़ा सीट पर सुधीर शर्मा या फिर जीएस बाली अथवा पवन काजल मैदान में उतारे जा सकते हैं। सुधीर शर्मा वीरभद्र सिंह के खेमे में हैं। इस तरह लोकसभा चुनाव की पहली कसरत यानी टिकट की दौड़ में कांग्रेस के लिहाज से वीरभद्र सिंह का पलड़ा भारी है। अब बात आती है चुनाव प्रचार की। ये सही है कि हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस की डगर मुश्किल है। कारण ये है कि भाजपा सत्ता में है और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने हिमाचल को भरपूर सहयोग दिया है। इसी बीच, एयर स्ट्राइक जैसा भावनात्मक मुद्दा भी है। हिमाचल में बड़ी संख्या में लोग फौज से जुड़े हुए हैं। ऐसे में सफल एयर स्ट्राइक को भाजपा अपने पक्ष में भुनाएगी। इसके अलावा जयराम सरकार अभी अपने शुरुआती चरण में है। लिहाजा इतनी जल्दी मोहभंग की स्थिति नहीं दिखती। कांग्रेस के पास बाजी पलटने वाला एकमात्र करिश्मा वीरभद्र सिंह के रूप में है।
इसमें भी एक पेंच है। वीरभद्र सिंह बढ़ती उम्र के कारण पहले जैसी सक्रियता की स्थिति में नहीं हैं। फिर भी उनके पास राजनीति में अर्जित अनुभव की वो पूंजी है, जिसके सहारे उनके समर्थक भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकते हैं। हाईकमान भी इस तथ्य से भली-भांति परिचित है। वीरभद्र सिंह का नाम ही कुछ ऐसा है कि प्रदेश की जनता उनसे सीधे कनेक्ट महसूस करती है। उनका पूरे प्रदेश में समान जनाधार है। हिमाचल की पुरानी पीढ़ी अभी भी वीरभद्र सिंह को आंख मूंदकर अपना नेता मानती है। हालांकि एक दशक में स्थितियां काफी बदली हैं, लेकिन राजनीति के राजा के तरकश में अनुभव के इतने तीर हैं कि विरोधी भी फूंक-फूंक कर कदम रखने को मजबूर होंगे। फिलहाल, टिकट वितरण से ये स्पष्ट होगा कि वीरभद्र सिंह खेमे को कितनी तरजीह मिली है। उसके बाद प्रचार के मोर्चे पर डटने की बारी आएगी। यदि टिकट वितरण वीरभद्र सिंह के पक्ष में गया तो वे नए जोश के साथ मैदान में उतरेंगे और उसका लाभ कांग्रेस को जरूर मिलेगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कुलदीप सिंह राठौर भी कहते हैं कि वीरभद्र सिंह कांग्रेस के लिए एसेट हैं और उनकी सक्रिय मौजूदगी से पार्टी को चुनावी उर्जा मिलेगी।