हिमाचल प्रदेश मे परित्यक्त गायों की समस्या से पार पाने के लिए पशुपालन विभाग अब विदेश से भ्रूण मंगवाकर बेहतर नस्ल की गायों का प्रजनन करेगा। इससे जहां गायों के दूध देने की क्षमता का विकास होगा वहीं दूध देने के दिनों मे भी दो गुना बढ़ोतरी होगी जिससे उन्हें छोडने की फितरत पर लगाम लगाई जा सकेगी। इसके लिए पशुपालन ने केंद्र को प्रस्ताव बनाकर भेजा है और केंद्रीय स्वास्थ्य व पशुपालन मंत्रालयों से आवश्यक मंजूरी के पश्चात भ्रूण आयातित करने की प्रक्रिया को अंजाम दिया जाएगा। पशुपालन विभाग आयात किए भ्रूणो को पालमपुर स्थित अपनी प्र्योगशाला मे संग्रहीत करके उसके प्रत्यरपन के जरिये बेहतर नस्ल की गायें पैदा करेगा।
इस तकनीक का नाम ई टी टी है। तकनीक मे माध्यम से प्र्त्यर्पित भ्रूण मे नब्बे फीसदी बछड़ी की पैदाईश की संभावना रहती है। और जो बछड़े भी पैदा होंगे वो उनत नस्ल के होने के चलते आगे चलकर प्रकृतिक प्रजनन मे सहायक होंगे। पशुपालन मंत्री अनिल शर्मा ने इस योजना की पुष्टि करते हुये बताया की योजना अब लगभग फ़ाइनल कर ली गयी है और भारत सरकार की हरी झंडी मिलते ही इसे क्रियान्वित कर दिया जाएगा। उन्होने बताया की इस तकनीक से राज्य मे जर्सी नस्ल की गायों की पैदाईश संभव होगी जिनसे अपेक्षाकृत अधिक दूध मिलता है। उनके मुताबिक यदि परियोजना सफल रही तो एक दशक के भीतर प्रदेश की गायों की नस्ल पूर रुपेण जर्सी मे बादल जाएगी और खास बात ये की आप इसे वर्णसंकर की कैटागिरी मे नहीं आरकेएच पाएंगे क्योंकि भ्रूण प्र्त्यपरन तकनीक से गायों का अपना नस्ल चक्र सक्रिय बना रहेगा। हालांकि उन्होने ये भी कहा की बीमारियाँ न फैलें इसके लिए विभाग एहतियात के तौर पर देसी नस्ल के रेड सिंधी और साहिवाल किस्म के सांडो से भी कृत्रिम प्रजनन जारी रखे हुये है। इसके लिए उतराखंड के कलसी फार मी मदद से राज्य मे मँगवाए गए 55 हज़ार स्ट्रॉ प्रयोग मे लाये जा रहे हैं।
लिंग आधारित गर्भाधान को नकारा
दरअसल पशुपालन विभाग ने पहले कृत्रिम गर्भाधान के जरिये शत प्रतिशत बछड़ियाँ पैदा करने का मन बनाया था। इसका परीक्षण भी शुरू हुआ लेकिन तकनीक महंगी होने के कारण उसे त्यागने का मन बना लिया ज्ञ है। इस माध्यम से बछड़े पैदा करने के लिए कम से कम तीन स्ट्रॉ (वीर्य के टीके) लगाने पद रहे थे । प्रति स्ट्रॉ 1500 रुपये केएचआरसीएच होते हैं। ऐसे मे पशुपालक इतनी महंगी तकनीक शायद नहीं अपनाते । दुरसे 4500 रुपये खर्चने के बाबजूद प्रदेश मे प्रयोगशाला परिणाम नब्बे फीसदी से आगे नहीं बढ़ रहे थे। लिहाजा विभाग ने इस तकनीक को नहीं पनाने का फैसला करते हुये ई टी टी का शर लेने की योजना बनाई है।
चारे पर भी हो रहा अनुसंधान
विभाग राष्ट्रीय डेयरी बोर्ड के गुजरात स्थित आनंद संस्थान के तत्वावधन मे राज्य मे चारे की किस्मों और तरीकों पर भी अनुसंधान कर रहा है। बीस लोगों की टीम इस कम को अंजाम देकर ये तय करेगी कि प्रदेश के किस हिस्से मे गायों को क्या चारा खिलना चाहिए ताकि उनसे अधिक दूध लिया जा सके। इसके अतिरिक्त पशु फीड के भी सैंपल लिए जाएंगे और पशुपालकों को गुणवत्ता के आधार पर फीड लेने कि सलाह दी जाएगी। यही नहीं भ्रूण प्र्त्यापारण तकनीक से पैदा हुये बछड़ों को निशुल्क घुमंतू गुज्जरोन को दिया जाएगा ताकि उनका कैटल किस्म भी प्रवर्तित हो सके। उल्लेखनीय है कि अभी प्रदेश मे सामान्य तौर पर प्रति गए पाँच से छह लीटर प्राप्त होते हैं जबकि नई नस्ल से एक समय मे 15 लीटर तक दूध हासिल क्या जा सकेगा।