सरकार पर अफसरशाही हाॅवी रही तो मिशन रिपीट असंभव होगा
– टिकट कटने पर कई नेता होंगे बागी

भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक भले ही सम्पन्न हो चुकी है। कई तरह की चर्चाए तेज हो चुकी हैै। कहीं विधायकों की टिकट कटने की चर्चा है तो कहीं मंत्रियों की परफारमेंस की चर्चा है। लेकिन सरकार की कमजोर कार्यप्रणाली की चर्चा इस बैठक से निकल कर सामने नहीं आई है। भाजपा के नेता ही नहीं बल्कि कांग्रेस के नेता भी मानते है कि हिमाचल प्रदेश भाजपा की रणनीति के मुताबिक 2022 का चुनाव नहीं होने वाला है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की असली रणनीति से ही चुनाव होगा। इन दोनों की रणनीति से कोई भी भाजपा का नेता वाकिफ नहीं होता है। तीन साल के कार्यकाल पूरा होने के बाद हुई भाजपा प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में इस बात को लेकर चर्चा ही नहीं हुई कि सरकार पर हावी हुई अफसरशाही का किस तरह जमीन पर उतारा जाए। क्योंकि अगर सरकार की छवि सुधर गई और जनता के दिलों में सरकार के प्रति सकारात्मक रवैया पैदा हो गया । तो भाजपा जिस मर्जी को प्रत्याशी बनाएं जीत तय होना लाजिमी है। सूत्रों के मुताबिक लेकिन सरकार अपनी कमजोर कार्यप्रणाली का ठीकरा अपने सर लेना ही नहीं चाहती है। भाजपा को मिशन रिपीट की सबसे बड़ी आस कांग्रेस नेतृत्व का कमजोर होना है। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस प्रदेश में सक्रिय हो गई है। मगर हैरानी की बात तो यह है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं में चर्चा है कि सरकार बार बार अपने फैसले से बदल जाती है। ऐसी कोई बड़ी उपल्बधि नहीं है जिसके दम पर सरकार रिपीट होती दिख रही हो रही है। कोरोना ने पहले सरकार के खजाने पर ताला लगाकर कई विकासात्मक प्रोजेक्ट को ठंडे वस्तें में डाल दिया है । वहीं भाजपा के कई बड़े नेताओं की आपसी नाराजगी कई मुसीबतों को पैदा कर रही है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप के पास संगठनात्मक अनुभव की कमी है। ऐसे में भाजपा को रिपीट करवाने के लिए संगठनात्मक अनुभव बहुत जरूरी रखता है। देखना यह है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह कौन सी रणनीति का इस्तेमाल करके भाजपा के लिए इतिहास रचेंगे। वैसे 1985 के बाद कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई। अगर भाजपा रिपीट नहीं भी होती है तो कोई बड़ा फर्क भाजपा को नहीं पड़ने वाला है। भाजपा का फोक्स पश्चिम बंगाल की और है और वहां के लिए पिछले डेढ़ साल से राजनीतिक हलचल शुरू कर दी है। लेकिन हिमाचल में ऐसा कुछ अभी शुरू हुआ है। तीन साल के कार्यक्रम के मौके पर भी प्रधानमंत्री हिस्सा नहीं बने। जबकि उनसे हिमाचल सरकार ने निवेदन दिया था।
टिकट काटने से एक कदम पीछे होगी भाजपा
अगर भाजपा सत्ता में होने के बाद भी अपने विधायकों और मंत्रियों की टिकट काट देती है तो भाजपा जीत से पीछे की ओर चली जाएगी। जिनकी टिकट कटेगी वो चुप तो बैठेंगे नहीं पार्टी के खिलाफ अगर चुनाव लड़ते है तो पार्टी को ही नुक्सान होना है। क्योंकि अगर सरकार की कार्यप्रणाली सही होगी तो विधायक मंत्री की कार्यप्रणाली भी सही होगी। सरकार तो मंत्री मंडल में फेरबदल भी कर चुकी है । इसके बावजूद भी सरकार में सुधार न हो पाए तो पार्टी के आला नेताओं को मंथन करना चाहिए।
चेहरा बदलने की चर्चा
भाजपा के अंदर खाते ये काफी चर्चा है कि विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री का चेहरा बदला जा सकता है। ये चर्चा क्यों भाजपा के अंदर है इसके पीछे सबके अपने अपने तर्क है। अगर भाजपा ऐसा करती तो भी सत्ता की राह आसान नहीं होनी होगी।