देश का बिजली राज्य होने का तमगा हासिल करने वाले हिमाचल मे अब बिजली परियोजनाओ की स्थापना से निवेशक मुंह मोड़ने लगे हैं। आलम ये है की वर्तमान सरकार के ही कार्यकाल के दौरान चिन्हित किए गए तीन दर्जन से अधिक बिजली प्रोजेक्टों के लिए निवेशक सामने नही आए हैं। ऊर्जा विभाग इनके लिए बार बार टेंडर जारी कर चुका है लेकिन कोई निवेशक दिलचस्पी नहीं दिखा रहा।
माना जा रहा है की निवेशकों की उदासीना के पीछे ऊर्जा नीति की सख्त शर्तें भूमि आवंटन और पर्यावरण संबंधी अन्य मंजूरियों मे आड़े आने वाली अड़चने मुख्य कारण हैं। उधर हाल ही मे हुयी कैबिनेट की बैठक के बाद सरकार ने नए सिरे से बीस और परियोजनाओ के टेंडर करवाने का फैसला लिया है लेकिन बड़ा सवाल यही है की ऊर्जा महकमा निवेशक कहाँ से लाएगा। जबकि पहले से आवंटित परियोजनाओं का ही काम नहीं शुरू हो पाया है।ऐसे मे क्या नयी परियोजनाओ का भी वही हश्र तो नहीं हो जाएगा। सूत्रों की माने तो निवेशक सबसे अधिक भूमि लीज के नियमो से परेशान हैं। सरकार की नीति के अनुसार बिजली प्रोजेक्टों को सर्कल रेट के दस फीसदी पर भूमि लीज पर दी जाती है ।
ऊपर से सरकार के पास रेट बढ़ाने का अधिकार भी सुरक्षित है। ऐसे मे मोटी रकम भूमि की लीज पर ही खर्च होने से प्रोजेक्ट की लागत बढ़ जाती है। जबकि अन्य मंजूरियों की पेचीदगियाँ अलग से हैं। ऐसे मे निवेशक कतरा रहे हैं। निवेशको की इस मांग के चलते विभाग ने ऊर्जा नीति मे संशोधन कंरने की भी संस्तुति की है लेकिन ये अभी संभव नहीं हो पाया है। ऐसे मे पुराने 37 और नए बीस बिजली प्रोजेक्टो के लिए निवेशक मिलेंगे ये सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न है। , इस प्रश्न से खुद ऊर्जा मंत्री सुजान सिंह पठानिया भी परेशान हैं। ऊर्जा मंत्री के अनुसार जल्द ही ऊर्जा नीति मे वांछित संशोधन कर लिया जाएगा। विभाग इसके लिए पड़ोसी राज्य उतराखंड की ऊर्जा नीति का भी गहन अध्ययन कर रहा है और उम्मीद है की जल्द सब ठीक हो जाएगा। ऊर्जा मंत्री ने माना की प्रोजेक्टों के लटकने से प्रदेश को बड़ा नुकसान हुआ है।