कहावतें भले ही ये कहती हों की गया वक्त वापिस नहीं लौटता लेकिन कसौली मैं सच मे गया हुआ वक्त लौट आया है। कसौली की रमणीक वादियाँ आजकल फिर से ब्रिटिश अंदाज़ मैं नींद से जग रही हैं, जब मुर्गे नहीं बल्कि चर्च की घड़ी की घंटी इस रूमानी शहर को सुप्रभातम कहती थी। स्थानीय चर्च की डेढ़ सौ साल पुरानी घड़ी की घंटी से तब कसौली की दिनचर्या बंधी रहती थी। लेकिन बरसों से कसौली वालों ने न तो वो आवाज सुनी थी और ना ही चर्च की घड़ी चल रही थी। अलबत्ता सब मान चुके थे की अब ये सब इतिहास बन चुका है । लेकिन चंडीगढ़ के एक युवा के जूनों ने वो बीते हुये दिन फिर से लौटा डाले हैं और कसौली एक बार फिर चर्च की डेढ़ सौ साल पुरानी घड़ी की तान से बांध कर चल रहा है।
चंडीगढ़ के अश्वनी कुमार जब भो कसौली आते उन्हें चर्च की कई दशकों से बंद पड़ी घड़ी मानो कुछ कहती थी। अश्वनी ने इस अनसुनी आवाज को सुनने की ठानी। और इस तरह शुरू हुआ एक ऐसा सिलसिला जिसने समय को फिर से लौटा दिया । अश्वनी के मुताबिक उन्होने अंतर्तने के माध्यम से जब खोज की तो पाया की कसौली के चर्च सरीखी कुछ ही घड़ियाँ विशाव मे बची हैं और उनमे से भी अधिकांश खराब हैं, बात बढ़ते बढ़ते कलकता पहुंची। अश्वनी ने जेब से पाँच हज़ार खर्च कर इंजीनियर बुलाया। उसने हाथ खड़े कर दिये और मूल घड़ी को एलेक्ट्रोनिक घड़ी से बदलेने का प्रस्ताव दिया । लेकिन अश्वनी ने न तो प्रस्ताव मंजूर किया और न ही हार मनी। इसी जुनून ने उनकी मुलाक़ात सेवानिवृत मेजर जनरल सुरजीत सिंह से कारवाई। सुरजीत सिंह को भी कसौली यात्राओं के दौरान चर्च की बंद पड़ी घड़ी खटकती थी। सेना के इंजीन्यरिंग विंग से सेवानिवृत सुरजीत सिंह ने जब अपने दोस्तों से इस बारे चर्चा की तो रास्ता खुल गया। सेना की इन्फैन्ट्री ब्रिगेड के दगशाई स्थित ई एम ई विंग के इंजीनियर चर्च का दौरा करने को मान गए। और ये दौरा कुछ ऐसे आगे बढ़ा की आज घड़ी फिर से चलनी शुरू हो गई है। इसमे पैसा उतना नहीं लगा जितना जुनून काम आया। लंदन की कंपनी द्व्ल्यौ एच बेली द्वारा 1870 मे निर्मित ये घड़ी वजन और हवा की आपसी तबादला तकनीक पर चलती है। आर्मी ने कड़ी मेहनत से इसके कलपुर्ज़ों को संवारा।