
ग्रामीण भारत ..
पिछले एक दशक में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर प्रवासन तेज़ी से हुआ है। इस तथ्य में किसी भी प्रकार की शंका नहीं है, परंतु एक सत्य यह भी है कि वैश्विक महामारी COVID-19 के दौरान भारत में रिवर्स माइग्रेशन (महानगरों और शहरों से कस्बों तथा गाँवों की ओर होने वाला प्रवासन) भी व्यापक पैमाने पर हुआ है। भारत में चार श्रमिकों में से अनिवार्य रूप से एक प्रवासी है। प्रवासी श्रमिकों की संख्या में प्रमाणिक आँकड़ों की कमी, उनके रहने और काम करने की स्थिति और आजीविका की संभावनाओं में स्थाई अनिश्चितता को इस महामारी ने विमर्श के केंद्र में ला दिया है। ग्रामीण विकास को गति देने के लिये बेहतर बुनियादी ढाँचे के विकास की आवश्यकता है।
बुनियादी ढाँचा किसी भी देश की प्रगति और आर्थिक विकास के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और किसी राष्ट्र की प्रगति की परख उसके बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता से होती है। बुनियादी ढाँचा निजी और सार्वजनिक, भौतिक और सेवाओं संबंधी और सामाजिक व आर्थिक किसी भी तरह का हो सकता है। आर्थिक बुनियादी ढाँचे के अंतर्गत परिवहन, संचार, बिजली, सिंचाई और इसी तरह की अन्य सुविधाएँ शामिल हैं। जबकि सामाजिक अवसंरचना के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, आवास आदि आते हैं।
इन क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ बुनियादी ढाँचे के विकास से निवेश दक्षता में वृद्धि होती है, विनिर्माण में प्रतिस्पर्धात्मकता आती है और निर्यात, रोज़गार, शहरी व ग्रामीण विकास को बढ़ावा मिलता है तथा ग्रामीण विकास व जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ देश को अनेक लाभ मिलते हैं।
आत्मनिर्भर भारत का मार्ग आत्मनिर्भर ग्राम की संकल्पना से होकर निकलता है।
परंतु उपनिवेशवादी नीति ने आत्मनिर्भर ग्राम की संकल्पना को तहस-नहस कर दिया।
कालांतर में कृषि लाभ के निरंतर घटने, शहरों में बेहतर रोज़गार की व्यवस्था, आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता, आधुनिक सुख-सुविधाओं की कमी ने गाँवों को भारतीय आवास के केंद्र से हटा कर परिधि पर ला दिया।
आत्मनिर्भर गाँवों का मॉडल एक स्वतंत्र लोकतंत्र का आधार है।
आत्मनिर्भर ग्राम की संकल्पना में गिरावट के कारण
मूलभूत सुविधाओं का अभाव: एक विचार जिसे एकेडेमिक समर्थन भी हासिल था कि ग्रामीण लोगों को पानी, बिजली और रोज़गार जैसी बुनियादी सुविधाएँ मुहैया कराना आसान हो जाता है, अगर वे किसी शहर में चले जाएँ। उस समय इस तरह की सोच को बौद्धिक लोगों ने भी समर्थन हासिल था। एक इस तथ्यात्मक तर्क के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में प्रवास को प्रोत्साहित किया गया।
रोज़गार का अभाव: ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों का सिल-सिलेवार अध्ययन कर विभिन्न अर्थशास्त्रियों व समाजशास्त्रियों ने यह बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका का मुख्य संसाधन अब युवाओं को आकर्षित नहीं कर पा रहा था।
अब ग्रामीण युवा भी शिक्षित हो चुके थे और बेहतर रोज़गार की तलाश में शहरों का रुख कर रहे थे।
आधुनिकीकरण: आधुनिकीकरण सामाजिक सिद्धांत का एक प्रमुख प्रतिमान था जिसमें महानगरों में विशाल झुग्गियों का विकास हुआ और उसी के समानांतर गाँवों में कामकाजी उम्र के लोगों की कमी में समानुपात देखा गया।
नीतियों का अभाव: विकास की आधुनिक अवधारणा में गाँवों में कोई विशेष सार्वजनिक निवेश नहीं किया जा सका। यहाँ तक कि चिकित्सा शिक्षा और शिक्षक प्रशिक्षण का तेजी से निजीकरण हो गया, गाँवों में काम करने के इच्छुक योग्य डॉक्टरों और शिक्षकों की उपलब्धता घट गई। जिसने कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को कमज़ोर कर दिया।
ग्रामीण केंद्रित विकास के मानक
सड़कों का बुनियादी ढाँचा: सड़क प्रणाली देश की अर्थव्यवस्था की धुरी है और विकास के केंद्र के रूप में कार्य करती है। इसके जरिए माल और कृषि पदार्थों का ढुलाई, पर्यटन और संपर्क जैसे कई महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न होते हैं। देश में सभी मौसमों में चालू रहने वाले मज़बूत सड़क नेटवर्क को बढ़ावा देने से तीव्र सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ, व्यापार के सुचारू रूप से संचालन तथा देश भर के बाजारों के समन्वयन में मदद मिलती है। रिपोर्ट के अनुसार, PMGSY ने अपना 85 प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
अब तक, 668,455 किमी. सड़क की लंबाई स्वीकृत की गई है, जिसमें से 581,417 किमी. पूरी हो चुकी थी।
संचार अवसंरचना: ई-गवर्नेस, बैंकों, वित्तीय सेवाओं, व्यापार, शिक्षा स्वास्थ्य, कृषि, पर्यटन, लॉजिस्टिक्स, परिवहन और नागरिक सेवाओं के क्षेत्र में नकदी विहीन लेन-देन में विकास से दूरसंचार क्षेत्र में जबर्दस्त तेजी आई है। दूरसंचार क्षेत्र में प्रगति से स्टार्टअप इंडिया, स्टैण्डअप इंडिया जैसी पहल के जरिए नव सृजन और उद्यमिता को बढ़ावा मिला है।
आज करीब 1.5 लाख ग्राम पंचायतें इंटरनेट और वाई-फाई हॉटस्पॉट तथा कम लागत पर डिजिटल सेवाओं तक पहुँच बनाने के लिये डिजिटल इंडिया और भारत नेट परियोजनाओं के तहत ऑप्टिकल फाइबर से जोड़ी जा रही हैं। इसके अलावा वित्तीय सेवाओं, टेली-मेडिसिन, शिक्षा, ई-गवर्नेंस, ई-मार्केटिंग और कौशल विकास को मंच प्रदान करने के लिये डिजी-गाँव की योजना बनाई गई है।
(DDU-GKY) गरीब ग्रामीण युवाओं को नौकरियों में नियमित रूप से न्यूनतम मज़दूरी के बराबर या उससे अधिक मासिक मज़दूरी प्रदान करने का लक्ष्य रखता है।
मनरेगा को भारत सरकार द्वारा वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम शुरूकिया गया जिसके तहत रोजगार गरंटी की बात कही गयी हालांकि इसमें भी अभी सुधार और विकास की जरूरत महसूस की जाती है
आवास योजना-ग्रामीण, इस योजना का उद्देश्य पूर्ण अनुदान के रूप में सहायता प्रदान करके आवास इकाइयों के निर्माण और मौजूदा गैर-लाभकारी कच्चे घरों के उन्नयन में गरीबी रेखा (BPL) से नीचे के ग्रामीण लोगों की मदद करना है। रिपोर्ट के अनुसार, आवास योजना के तहत लक्षित एक करोड़ घरों में से करीब 7.47 लाख घरों का निर्माण पूरा होना अभी शेष है। इसमें से अधिकतर घर बिहार (26 प्रतिशत), ओडिशा (15.2 प्रतिशत), तमिलनाडु (8.7 प्रतिशत) और मध्य प्रदेश (आठ प्रतिशत) में हैं।
स्वच्छ भारत अभियान लोगों में स्वच्छता, आरोग्य और स्वास्थ्य के बारे में जागरुकता पैदा करने की पहल है। वर्ष 2018-19 तक देश भर के 85 प्रतिशत इलाके को इसके दायरे में लिया जा चुका था और 391 जिलों के 3.8 लाख गाँवों को खुले में शौच की बुराई से छुटकारा दिलाया जा चुका था। लोग इस कार्यक्रम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं और अपने घर में निजी शौचालयों का निर्माण कर रहे हैं। लोगों की मानसिकता में बदलाव आने और शौचालयों की सामाजिक स्वीकार्यता बढ़ने से लोग कूड़े-कचरे के निपटान के कार्यक्रमों में भी हिस्सा लेने लगे हैं।
ग्रामीण विकास में ‘पुरा’ की अवधारणा
गाँवों के विकास के लिये पूर्व राष्ट्रपति स्व. डॉ.अब्दुल कलाम ने ‘पुरा’(providing urban amenities of rural areas) का विचार प्रस्तुत किया जिसके तहत 4 प्रकार की ग्रामीण-शहरी कनेक्टिविटी की बात की गई थी- फिजिकल, इलेक्ट्रॉनिक, नॉलेज तथा इकोनॉमिक कनेक्टिविटी।
पुरा का लक्ष्य सभी को आय और आजीविका के अवसरों की गुणवत्ता प्रदान करना था।
इसके द्वारा सार्वजनिक-निजी भागीदारी के माध्यम से प्रति यूनिट 130 करोड़ रुपये की लागत से 7,000 PURA परिसरों की कल्पना की गई थी।
भारतीय अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति काफी चिंताजनक है। ऐसे में सरकार द्वारा चलाए जा रहे विभिन्न ग्रामीण विकास कार्यक्रमों का महत्त्व काफी बढ़ जाता है। अभी भी स्वच्छ प्रकृति, कम व्यय क्षमता के कारण गाँवों की प्रासंगिकता बरकरार है। यदि सरकार द्वारा मूलभूत सुविधाओं की पूर्ति की जाए तो ग्रामसभाएँ आज शहरों की अपेक्षा अधिक प्रासंगिक होंगी।